आइएनएस अरिहंत स्वदेशी तरीके से विकसित पहली परमाणु पनडुब्बी है। इसे वर्ष 2009 में लांच किया गया था मगर इसकी तैयारी 1970 के दशक में ही शुरू हो गई थी। इसके निर्माण के साथ ही भारत छठां ऐसा देश बन गया था जिसके पास स्वदेशी परमाणु पनडुब्बी है।
नई दिल्ली, फीचर डेस्क। भारत द्वारा अपना पहला परमाणु परीक्षण (1974 में) करने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस पनडुब्बी को मंजूरी दी थी। औपचारिक मंजूरी मिलने के बाद आइएनएस अरिहंत के डिजाइन और प्रौद्योगिकी को 1984 में तैयार कर लिया गया था। हालांकि पनडुब्बी पर काम 1998 में शुरू हुआ था। हालांकि देश की पहली स्वदेशी परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी के निर्माण में शिप बिल्डिंग सेंटर को करीब 11 साल लग गए। आइएनएस अरिहंत को 26 जुलाई, 2009 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कारगिल युद्ध की समाप्ति के 10 साल पूरे होने के अवसर पर लांच किया था। इसके बाद अगस्त 2013 में पनडुब्बी के परमाणु रिएक्टर को सक्रिय किया गया और अगस्त 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस स्वदेशी पनडुब्बी को नौसेना में शामिल किया। इसी के साथ भारत परमाणु क्षमता से लैस पनडुब्बी बनाने वाला दुनिया का छठा देश बन गया। इसके पहले अमेरिका, चीन, फ्रांस, रूस और ब्रिटेन ही परमाणु पनडुब्बी का निर्माण कर पाए थे। अरिहंत का मतलब होता है ‘दुश्मन को नष्ट करने वाला’।
आइएनएस अरिहंत का सफर: आइएनएस अरिहंत के बनने की शुरुआत वर्ष 1967 में ही हो चुकी थी। उसी वर्ष नौसेना और बार्क (भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर) ने परमाणु शक्ति से चलने वाली स्वदेशी पनडुब्बी बनाने की योजना बनाई थी। इसके बाद वर्ष 1970 में इंदिरा गांधी ने बार्क और डीआरडीओ को इस पर काम शुरू करने को कहा। फिर 1984 में एडवांस्ड टेक्नोलाजी वेसल (एटीवी) प्रोजेक्ट लांच किया गया। 1998 में एटीवी पर लार्सन एंड टुब्रो ने पनडुब्बी बनानी शुरू की। इसके बाद 2009 में अरिहंत पनडुब्बी को लांच किया गया। इसे विशाखापट्टनम के शिप बिल्डिंग सेंटर में बार्क, भारतीय नौसेना और डीआरडीओ के विज्ञानियों ने तैयार किया था। यह जल, थल और नभ में मार करने में सक्षम है। इसे न्यूक्लियर ट्रायड भी कहा जाता है, जिसका मतलब होता है तीनों स्तर की सुरक्षा। आइएनएस अरिहंत 6,000 टन की पनडुब्बी है, जिसकी लंबाई 110 मीटर और चौड़ाई 11 मीटर है।
अन्य पनडुब्बियों से कैसे अलग है?: स्ट्रैटेजिक स्ट्राइक न्यूक्लियर सबमरीन (एसएसबीएन) पारंपरिक एसएसके पनडुब्बियों से अलग हैं, क्योंकि इनमें पावर सोर्स के रूप में डीजल-इलेक्ट्रिक इंजन का उपयोग किया जाता है। ईंधन दहन के लिए जरूरी आक्सीजन प्राप्त करने के लिए इन्हें रोजाना सतह पर आना पड़ता है। वहीं एसएसबीएन आकार में बड़े होते हैं और परमाणु रिएक्टर द्वारा संचालित होने की वजह से ये सतह पर आए बिना महीनों तक जलमग्न रह सकते हैं। यह सुविधा परमाणु पनडुब्बी को गुप्त तरीके से समुद्र में यात्रा करने की अनुमति देती है। इतना ही नहीं, आइएनएस अरिहंत न्यूक्लियर पावर्ड अटैक सबमरीन (एसएसएन) से भी अलग है, क्योंकि यह परमाणु हथियारों के साथ बैलिस्टिक मिसाइल ले जा सकती है।