प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित ‘गति शक्ति’ योजना से रफ्तार को मिलेगा नया आयाम

पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने का रेल का इतिहास बहुत पुराना और प्रमुख है।

भारतीय रेलवे पहले ही ‘गति शक्ति’ के लिए रेलवे बोर्ड में एक विशेष निदेशालय का गठन कर चुका है। इस योजना का मूलभूत आधार इसरो की मदद से बीआइएसएजी-एन (भास्कराचार्य नेशनल इंस्टीट्यूट फार स्पेस एप्लिकेशन एंड जियोइनफारमैटिक्स) द्वारा विकसित विशेष मानचित्र है।

परिवहन के साधनों की गति जैसे-जैसे बढ़ती गई, वैसे-वैसे वैश्विक प्रगति उस पर निर्भर होती गई। पिछली लगभग दो शताब्दियों के मशीनी युग यानी ‘औद्योगिक क्रांति’ का इतिहास देखें तो रेल, सड़कों पर चलने वाले तमाम वाहन और समुद्री जहाज से लेकर विमान आदि की गति को तकनीक की मदद से बढ़ाने में व्यापक तौर पर मदद मिली है। यह भी कह सकते हैं कि आधुनिक तकनीक के उपयोग से इनकी स्पीड में वृद्धि संभव हुई। साथ ही तकनीक के विकास से इनकी क्षमताओं का निरंतर विस्तार होता गया। नए नए आविष्कारों की मदद से नई तकनीकें आती गईं और ‘हाइ स्पीड’ के नए कीर्तिमान स्थापित होते गए। ‘हाइ स्पीड’ की मदद से केवल यातायात और उससे संबंधित अर्थव्यवस्था ही नहीं, बल्कि मानव संसाधन के क्षेत्र में भी वृद्धि होती है। इन परिस्थितियों के बीच यह स्वाभाविक है कि विकसित देश अपने महत्वपूर्ण शहरों के बीच की रेल सेवाओं को हाई स्पीड से जोड़ना चाहते हैं।

इस संदर्भ में यदि हम भारत की बात करें तो यह सही है कि पिछले लगभग पांच-छह दशकों में भारतीय रेल की औसत गति (कुछ चुनिंदा ट्रेनों और रूट को छोड़कर) को बहुत अधिक बढ़ाने में सफलता नहीं मिली है। बीते दिनों प्रधानमंत्री द्वारा घोषित ‘गति शक्ति’ योजना से इस दिशा में व्यापक सफलता मिलने की उम्मीद जगी है। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के दौर में इस योजना के माध्यम से देश की आधारभूत संरचना का सर्वागीण विकास करने पर जोर दिया जा रहा है। इसके तहत पहले से मौजूद आधारभूत संरचना के आधुनिकीकरण के साथ ही नए बुनियादी ढांचों का निर्माण करने के लिए समग्र व युक्तिसंगत तरीका अपनाया जा रहा है। इस योजना के माध्यम से उद्योगों की गति को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी जिससे देश की अर्थव्यवस्था को भी गति मिलेगी।

हालांकि इस दिशा में एकीकृत रूप से आगे बढ़ने के लिए वर्तमान में परिवहन के विविध साधनों में आपसी तालमेल का अभाव दिखता है। इस योजना के माध्यम से इस गतिरोध को भी समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है। दरअसल इस योजना के तहत भारतमाला, सागरमाला, अंतर्देशीय जलमार्ग, शुष्क भूमि बंदरगाह, उड़ान आदि विभिन्न मंत्रलयों की महत्वाकांक्षी योजनाओं को एकीकृत किया जा रहा है। केंद्र सरकार के संबंधित मंत्रलयों एवं राज्य सरकारों को एक साथ काम करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इससे देश के सभी क्षेत्रों तक पहुंचने में गुणवत्तापूर्ण सुधार की उम्मीद की जा रही है जिसका लाभ दीर्घकाल में देश की समग्र अर्थव्यवस्था को होगा।

भारतीय रेलवे पहले ही ‘गति शक्ति’ के लिए रेलवे बोर्ड में एक विशेष निदेशालय का गठन कर चुका है। इस योजना का मूलभूत आधार इसरो की मदद से बीआइएसएजी-एन (भास्कराचार्य नेशनल इंस्टीट्यूट फार स्पेस एप्लिकेशन एंड जियोइनफारमैटिक्स) द्वारा विकसित विशेष मानचित्र है। विकसित देशों में रेल लाइन बिछाने के अलावा परिवहन संबंधी आधारभूत ढांचा विकसित करने में इस तरह की तकनीक का उपयोग किया जाता रहा है। नदियों पर बनाए जाने वाले पुलों समेत पहाड़ी इलाकों में सुरंग आदि का एलाइनमेंट सेट करने में इसकी विशेष रूप से मदद ली जाती है। इससे निर्माण परियोजनाओं की प्रगति में काफी सुधार हुआ है।

वैसे एक तथ्य यह भी सही है कि बुनियादी ढांचे की परियोजनाएं संसाधनों और संबंधित विभागों के बीच समन्वय पर निर्भर हैं। इस लिहाज से यह भी देखना होगा कि भारत में गति शक्ति योजना से संबंधित तमाम विभागों के बीच किस स्तर पर समन्वय हो पाता है, ताकि इसे धरातल पर उतारने में विशेष परेशानी सामने नहीं आए। इस योजना में भारतीय रेल की भूमिका इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने का रेल का इतिहास बहुत पुराना और प्रमुख है।