विशेषज्ञ ने बताया दिल्ली में पेयजल संकट से निपटने का आसान तरीका, आप भी जानें

 

जल प्रबंधन बेहतर हो और पड़ोसी राज्यों के साथ तालमेल अच्छा रहे तो इस समस्या से निपटा जा सकता है।

वजीराबाद चंद्रावल व ओखला जल शोधन संयंत्र के लिए ज्यादा वजीराबाद बैराज से यमुना का पानी लिया जाता है। गर्मी में यदि वजीराबाद चंद्रावल व ओखला जल शोधन संयंत्र के लिए भी करीब पूरा पानी मूनक नहर व डीएसबी से लिया जाए तो समस्या का निदान हो सकता है।

नई दिल्ली। कभी यमुना में अमोनिया का स्तर बढ़ने तो कभी पानी कम होने के कारण दिल्लीवासियों को पेयजल संकट का सामना करना पड़ता है। इस बार रिकार्ड तोड़ गर्मी के बीच पेयजल किल्लत से अधिक जूझना पड़ रहा है। चिंताजनक यह है कि इसके निदान के लिए गंभीर प्रयास करने के बजाय राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप अधिक हो रहे हैं। यह सही है कि इस बार वजीराबाद में यमुना का सूख जाना पेयजल किल्लत का बड़ा कारण है, लेकिन यदि दिल्ली में जल प्रबंधन बेहतर हो और पड़ोसी राज्यों के साथ तालमेल अच्छा किया जाए तो इस समस्या से निपटा जा सकता है।

..इसलिए हर बार खड़ा होता है संकट

यह पहला मौका नहीं है जब वजीराबाद में यमुना का स्तर 668 फीट से नीचे आ गया है, जो सामान्य (674.50 फीट) से बहुत कम है। गर्मी में पहले भी इस तरह की समस्या आई है। लेकिन, उसे ध्यान में रखकर अब तक प्रबंधन के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए। कुछ साल पहले तक यमुना में अमोनिया बढ़ने के कारण पेयजल आपूर्ति प्रभावित होने की समस्या अधिक होती थी।

इसके मद्देनजर हैदरपुर जल शोधन संयंत्र से वजीराबाद जल शोधन संयंत्र के बीच एक पाइपलाइन डालने के बाद इस समस्या का कुछ हद तक निदान हुआ। दरअसल, दिल्ली में यमुना का पानी हरियाणा से तीन माध्यमों से आता है, जिसमें पक्की मूनक नहर, दिल्ली सब ब्रांच (डीएसबी) नहर व यमुना नदी शामिल है। मूनक नहर व डीएसबी से हैदरपुर, नांगलोई, बवाना व द्वारका जल शोधन संयंत्र में पानी पहुंचता है।

वजीराबाद, चंद्रावल व ओखला जल शोधन संयंत्र के लिए ज्यादा वजीराबाद बैराज से यमुना का पानी लिया जाता है। ऐसे में गर्मी में यमुना में पानी कम होने पर समस्या बढ़ना स्वाभाविक है। इसलिए गर्मी में यदि वजीराबाद, चंद्रावल व ओखला जल शोधन संयंत्र के लिए भी करीब पूरा पानी मूनक नहर व डीएसबी से लिया जाए तो समस्या का निदान हो सकता है। नहर के जरिये पानी आने पर ज्यादा बर्बादी भी नहीं होगी। इसके लिए हैदरपुर जल शोधन संयंत्र से वजीराबाद संयंत्र में पानी ले जाने के लिए दो पाइपलाइन होना जरूरी है।

मौजूदा समय में सिर्फ एक पाइपलाइन है, जिसकी क्षमता करीब 284 क्यूसेक है। इस पाइपलाइन से मूनक नहर व डीएसबी का पानी तीनों संयंत्रों में ले जाकर संभवत: शोधित भी किया जा रहा है, लेकिन इस एक पाइपलाइन की क्षमता इतनी नहीं है कि तीन जल शोधन संयंत्रों की क्षमता के अनुरूप पानी पहुंचा सके। इसलिए हैदरपुर से वजीराबाद के बीच करीब 125 क्यूसेक क्षमता की दूसरी पाइपलाइन डालनी पड़ेगी और वजीराबाद बैराज के पास यमुना में जो 120 क्यूसेक पानी की जरूरत होती है यदि वह मूनक नहर व डीएसबी के जरिये ही हरियाणा सरकार से उपलब्ध कराने के लिए कहा जाए तो गर्मी में होने वाली पेयजल किल्लत काफी हद तक दूर हो जाएगी।

वितरण और प्रबंधन बेहतर हो

दूसरी बात यह है कि पेयजल वितरण और प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए वर्ष 2012 में जल नीति व मास्टर प्लान तैयार किया गया था। यह जल नीति लागू नहीं हुई। इस जल नीति के मसौदे में पेयजल के बराबर वितरण, पानी की बर्बादी रोकने व बाढ़ के पानी के भंडारण पर जोर दिया गया था। दिल्ली में अभी प्रति व्यक्ति करीब 212 लीटर पानी उपलब्ध है। जबकि केंद्रीय शहर विकास मंत्रलय के दिशा निर्देश के अनुसार महानगरों में प्रति व्यक्ति 150 लीटर पानी उपलब्ध होना चाहिए। कई इलाकों में प्रतिदिन प्रति व्यक्ति 300 लीटर से अधिक पानी की आपूर्ति होती है तो कहीं लोग टैंकर पर निर्भर हैं। इस असमानता को दूर करना होगा। अब बात आती है जल संग्रहण की। बाढ़ के पानी के भंडारण की क्षमता नहीं होने के कारण 298 एमसीएम पानी बह जाता है।

बाढ़ के पानी के संग्रहण की कई बार योजनाएं बनी लेकिन तकनीकी व कुछ अन्य कारणों से योजनाओं पर खास अमल नहीं हो सका। सीवरेज के शोधन से करीब 500 एमजीडी से पानी उपलब्ध होता है। उसे दोबारा शोधित कर गैर घरेलू कार्यों में इस्तेमाल कर पेयजल की बचत की जा सकती है। इसके लिए भी वर्षों पहले पहल की गई। फिर भी अभी 90-100 एमजीडी सीवरेज से उपचारित पानी ही विभिन्न कार्यों में इस्तेमाल हो पाता है। यदि भविष्य में पेयजल संकट से बचना है तो इन योजनाओं को गंभीरता से धरातल पर उतरना होगा। -रणविजय सिंह से बातचीत पर आधारित