साल में नौ माह सूखी रहती है यमुना मगर फिर भी चल रही मुफ्त पानी की योजना

 

हर किसी की भागीदारी से ही बनेगी बात

इस वजह से हर साल संकट भी बढ़ जाता है। अब जब तक मानसून नहीं आता तब तक पानी के लिए लोगों को ऐसे ही तरसना पड़ेगा। दिल्ली के पास कोई पानी का प्राकृतिक स्नोत नहीं है। भू-जलस्तर पहले ही यहां काफी कम हो चुका है।

नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी में पानी की किल्लत कोई एक बार की समस्या नहीं है। हर साल मई-जून के महीने में यह संकट खड़ा हो जाता है। यमुना में पानी नहीं होता। फिर दोषारोपण शुरू हो जाता है कि हरियाणा पानी नहीं दे रहा है। हरियाणा के पास असीमित जल संसाधन नहीं हैं। न ही कोई उसके पास जादू की छड़ी है कि घुमाया और दिल्ली को उसकी जरूरत का पानी मिल गया। इसलिए सरकार को यह सोचना है कि पूरे साल पानी की व्यवस्था कैसे की जा सकती है।

स्थिति ऐसी हो चुकी है कि राजधानी में रहने वाले हर नागरिक को जिम्मेदार बनना होगा। अपनी आदत बदलनी होगी। पानी की बर्बादी रोकने के लिए गंभीर होना पड़ेगा। हर साल तापमान में रिकार्ड तोड़ वृद्धि दर्ज हो रही है। इस वजह से हर साल संकट भी बढ़ जाता है। अब जब तक मानसून नहीं आता, तब तक पानी के लिए लोगों को ऐसे ही तरसना पड़ेगा। दिल्ली के पास कोई पानी का प्राकृतिक स्नोत नहीं है। भू-जलस्तर पहले ही यहां काफी कम हो चुका है।

कुल मिलाकर हम यमुना के भरोसे बैठे हैं जो वर्ष में नौ महीने सूखी रहती है। उसमें पानी वही आता है जो हरियाणा और भाखड़ा बांध से मिलता है। इसके बावजूद दिल्ली में मुफ्त पानी की योजना चल रही है। एक बात समझ लीजिए मुफ्त की चीजों को लोग अहमियत नहीं देते हैं। ऐसा ही कुछ पानी के साथ हो रहा है। जब इसका कोई मूल्य नहीं देना पड़ रहा है तो लोग इसे बचाने की कोशिश क्यों करेंगे? यह प्रवृत्ति बदलने की आवश्यकता है।

जरूरतमंदों को सस्ता पानी उपलब्ध कराना चाहिए। लेकिन निश्शुल्क नहीं। जो सक्षम हैं उन्हें कीमत चुकाने का मौका मिलना चाहिए। इसके साथ जल बोर्ड द्वारा जो पानी की आपूर्ति की जाती है। इसमें लगभग 45 प्रतिशत पानी रास्ते में गायब हो जाता है। ये कहां गायब होता है, इसका किसी को पता नहीं है। इसे रोकने की जरूरत है।

सफल हों योजना, तो सुधरे हालात

हाल ही में दिल्ली सरकार की तरफ से कुछ बड़े भूमिगत जलाशय बनाए जा रहे हैं। अगर योजना पर सही तरीके से अमल हुआ तो ये काफी कारगर हो सकते हैं। इसमें पानी जमा कर सकते हैं। इसका प्रयोग संकट के समय किया जा सकता है। इसके साथ तालाब की योजना भी चल रही है। ये भू-जलस्तर को बढ़ाने में सहायक साबित हो सकते हैं। यमुना से इतर हमें भू-जलस्तर को बढ़ाने पर ही जोर देना होगा। अभी हाउसिंग सोसायटियों से लेकर अनधिकृत कालोनियों में सबमर्सिबल इस्तेमाल किए जा रहे हैं। इन पर पूर्णतया रोक है लेकिन पालन नहीं हो रहा है। इनकी वजह से भू-जलस्तर का दोहन हो रहा है।

ये भविष्य के लिए चुनौती है। एक उपाय यह है कि सभी हाउसिंग सोसायटियों, संस्थान, कंपनियों आदि के लिए वर्षा जल संचयन को अनिवार्य कर दिया जाए। इनकी वर्षा जल संचयन की क्षमता का आकलन किया जाए और उतना ही पानी जल बोर्ड इनके लिए अपनी आपूर्ति में से कम कर दे। वर्षा जल संचयन का फायदा यह होगा कि सफाई, सिंचाई और अन्य कार्यों के लिए ये सोसायटी उसका इस्तेमाल कर सकेंगी। जल बोर्ड का पानी बच जाएगा। कुल मिलाकर सभी को पानी बचाने के लिए संजीदा होना पड़ेगा।