ध्वनि प्रदूषण का उच्च स्तर नींद पर असर डालकर मानव स्वास्थ्य और खुशहाली को प्रभावित करता है। यूएनईपी की रिपोर्ट में 114 डेसिबल शोर के साथ भारत का मुरादाबाद शहर ध्वनि प्रदूषण के लिहाज से दुनिया में दूसरे पायदान पर है। टाप-15 शहरों में भारत के कुल तीन शहर हैं।
नई दिल्ली। सड़कों का ट्रैफिक शोर आपके बच्चों की सेहत के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है। हाल में आए एक शोध में सामने आया है कि ट्रैफिक के शोर की वजह से बच्चों का दिमागी विकास प्रभावित हो रहा है। शोध के अनुसार स्कूलों के आसपास ट्रैफिक का शोर बच्चों के एकाग्र करने की क्षमता और मेमोरी को प्रभावित कर रहा है। यह रिसर्च बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ द्वारा की गई है। शोध के अनुसार स्कूल जाने वाले बच्चे जो 55 डेसीबेल या उससे अधिक के ट्रैफिक शोर के संपर्क में आते हैं उनमें विकास की प्रवृत्ति धीमी होती है। साथ ही उनकी तल्लीनता पर भी शोर का असर पड़ता है। वहीं इसके विपरीत जो बच्चे 30 डेसीबेल या उससे कम शोर के संपर्क में आए उनकी एकाग्रता अधिक शोर वाले बच्चों की तुलना में बेहतर थी।
तय सीमा से ज्यादा दर्ज हो रहा है ध्वनि प्रदूषण
एक औसत अनुमान के मुताबिक यह सभी सातों शहरों की कमोबेश हर लोकेशन पर तय सीमा से ज्यादा दर्ज हो रहा है। ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख स्रोत -वाहन, निर्माण कार्य, सामुदायिक स्तर पर उत्पन्न शोर और पटाखे स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव -ऊंचा सुनना, बहरापन, तनाव, घबराहट, मांसपेशियों में जकड़न, उच्च रक्तचाप और नींद में खलल।