ऐसे में वह भी आरोपितों की पहचान नहीं पाया। हालांकि बीट कांस्टेबल रविंद्र ने बयान दिया कि उसने दोनों आरोपितों को घटना स्थल पर देखा था। आरोपित योगेंद्र की तरफ से अधिवक्ता निशांत ज्यागी और सूरज की ओर से दीपक मोहन ने पक्ष रखते हुए कहा कि दोनों बेगुनाह है।
नई दिल्ली A.k.Aggarwal। दिल्ली दंगे में ज्योति नगर थाना क्षेत्र में दुकान जलाने के एक मामले में कड़कड़डूमा कोर्ट ने दो लोगों को बरी कर दिया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत के कोर्ट ने कहा कि दिल्ली पुलिस ने जिस चश्मदीद गवाह राकेश का हवाला देते हुए पूरा केस बनाया था, उसे पेश नहीं किया। कांस्टेबल रविंद्र की गवाही के मद्देनजर चश्मदीद गवाह राकेश के अस्तित्व पर गंभीर संदेह होता है।आरोपपत्र में इन पर दंगा करने, घातक हथियार इस्तेमाल करने, गैर कानूनी समूह में शामिल होने, सरकारी आदेश का उल्लंघन करने, संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और आग लगाने का आरोप लगाया गया था। उसमें दावा किया था कि पुलिस गवाहों के अलावा चश्मदीद गवाह राकेश ने दोनों आरोपितों को घटनास्थल पर देखा था। योगेंद्र को दस माह और सूरज को 11 माह न्यायिक हिरासत में बिताने के बाद जमानत मिल गई थी। नवंबर 2021 में कोर्ट ने इस मामले में आरोप तय किए थे, जिसमें दोनों ने खुद को बेगुनाह बताते हुए ट्रायल की मांग की थी।
मामले में ट्रायल होने पर पुलिस चश्मदीद गवाह राकेश को कोर्ट में पेश नहीं कर पाई। 22 अप्रैल 2022 को पुलिस ने गवाहों कीे सूची से उसका नाम हटा लिया। यह कहते हुए कि वह आरोपपत्र में दिए गए पते पर नहीं रह रहा। उसे तलाश कर पाना मुश्किल है।
पीड़ित मुहम्मद सलीम ने कहा कि उसने घटना होते हुए नहीं देखी। ऐसे में वह भी आरोपितों की पहचान नहीं पाया। हालांकि बीट कांस्टेबल रविंद्र ने बयान दिया कि उसने दोनों आरोपितों को घटना स्थल पर देखा था। आरोपित योगेंद्र की तरफ से अधिवक्ता निशांत ज्यागी और सूरज की ओर से दीपक मोहन ने पक्ष रखते हुए कहा कि दोनों बेगुनाह है।
उनके खिलाफ पुलिस कोई ठोस साक्ष्य पेश नहीं कर पाई है। एकमात्र चश्मदीद गवाह को पुलिस पेश नहीं कर पाई है, जिससे उसके अस्तित्व पर संदेह होता है। सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने सूरज और योगेंद्र को बरी कर दिया।