महिला मजदूर को मिला 9.30 लाख रुपये का मुआवजा, SC ने कहा- जीवन जीने के लिए आर्थिक मदद जरूरी


नई दिल्ली, एजेंसी। कोई भी धनराशि या अन्य वस्तुगत मुआवजा उस पीड़ा को मिटा नहीं सकता है जो एक गंभीर दुर्घटना के बाद पीड़ित को भुगतना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से यह बयान सामने आया है। समाचार एजेंसी पीटीआइ के मुताबिक,  इसके साथ ही शीर्ष न्यायलय ने यह भी कहा है कि आर्थिक मुआवजा केवल क्षतिपूर्ति का आश्वासन देता है। बता दें कि कर्नाटक के बीदर में सरकारी अस्पताल के निर्माण के दौरान घायल हुई एक महिला मजदूर को 9.30 लाख रुपये का मुआवजा देते हुए शीर्ष अदालत ने यह बात कही।

क्षतिपूर्ति का आश्वासन देता है मुआवजा

जस्टिस कृष्ण मुरारी और एस रवींद्र भट की पीठ ने कहा कि विकलांगता के प्रकार को देखते हुए पीड़ित लोगों को उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए। बेंच ने अपनी टिप्पणी में कहा, 'कोई भी राशि या अन्य वस्तुगत मुआवजा किसी गंभीर दुर्घटना के बाद पीड़ित के दर्द और पीड़ा को मिटा नहीं सकता है, आर्थिक मुआवजा कानून के लिए जाना जाने वाला एक तरीका है, जिससे समाज जीवित रहने वालों और पीड़ितों को अपने जीवन का सामना करने के लिए क्षतिपूर्ति का आश्वासन देता है। मंजिल से नीचे गिर गई थी महिला मजदूर

बता दें कि शीर्ष अदालत में अपील करने वाली पीड़ित महिला 22 जुलाई, 2015 को, दूसरी मंजिल से नीचे पर गिर गई थी, तब सेंटरिंग प्लेट उसके सिर पर गिर गया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता का इलाज करने वाले डॉक्टरों ने माना है कि उसे रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर हुआ है और शरीर के विभिन्न अंगों अंगों में भी कंपाउंड फ्रैक्चर है। शीर्ष अदालत ने कहा कि आदर्श रूप से, कर्मचारियों को रोजगार के खतरों के लिए मुआवजा दिया जाना चाहिए।शरीरिक रूप से काम करने में सक्षम नहीं, इसलिए मिला चाहिए मुआवजा

बेंच ने कहा, 'इसमें सभी व्यावसायिक बीमारी या औद्योगिक दुर्घटना शामिल है, जो कर्मचारी को रोजगार के दौरान उत्पन्न हो सकती है, जिससे विकलांगता या मृत्यु हो जाती है। दुर्घटना के बाद अपीलकर्ता पूरी तरह से शारीरिक रूप से अब मजदूर के रूप में काम करने में सक्षम नहीं है, तदनुसार मुआवजे का निर्धारण किया जाना है।'