कर्नाटक सरकार को आरक्षण राजनीति पर केंद्रीय नेतृत्व ने दी धीरे चलने की सलाह, कैबिनेट विस्तार पर भी फैसला जल्द

 

नई दिल्ली,  ब्यूरो। दक्षिण में अपने एकमात्र गढ़ कर्नाटक में चल रही आपसी और व्यक्तिगत खींचतान को सुलझाना भाजपा नेतृत्व के लिए सिरदर्द बन गया है। प्रदेश में अगले तीन चार महीने में चुनाव है और उससे पहले कैबिनेट विस्तार, प्रभावी लिंगायत में एक वर्ग के लिए आरक्षण का प्रस्ताव और दूसरे वर्गों से भी उठ रही ऐसी ही मांग जैसे कई मुद्दे मुंह बाए खड़े हैं।

आरक्षण के मुद्दे पर केंद्रीय नेतृत्व ने दिया ये निर्देश

बताया जाता है कि केंद्रीय नेतृत्व प्रदेश से आ रहे इन प्रस्तावों से पूरी तरह सहमत नहीं है, लेकिन प्रदेश नेतृत्व की ओर से जोर आजमाइश चल रही है। प्रदेश के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को आरक्षण के मुद्दे पर धीरे चलने का निर्देश दिया गया है। चुनाव के कुछ महीने पहले कैबिनेट विस्तार को सीधे तौर पर दबाव की राजनीति के रूप में देखा जा रहा है। भ्रष्टाचार के आरोप में इस्तीफा देने वाले केएस ईश्वरप्पा खुलेआम दबाव बना रहे हैं।

कैबिनेट विस्तार पर हो सकती है सहमति

बहरहाल सूत्रों की मानी जाए तो कर्नाटक की राजनीति को देखते हुए कैबिनेट विस्तार पर सहमति हो सकती है। लेकिन जब चारों तरफ से आरक्षण की मांग तेज हो रही हो तो केवल पंचमशाली आरक्षण को लेकर केंद्रीय नेतृत्व आशंकित है। रोचक तथ्य यह है कि कर्नाटक में कुछ नेता इसकी घोषणा कर चुके हैं कि 29 दिसंबर तक इसका निर्णय हो जाएगा। लेकिन जब भाजपा केवल लिंगायत ही नहीं, वोकालिग्गा और दूसरे वर्गों से भी वोट की तलाश में जुटी है तो पंचमशाली आरक्षण को खतरनाक माना जा रहा है।

सीएम बोम्मई का है ये प्लान

सूत्रों के अनुसार केंद्रीय नेतृत्व ने फिलहाल बोम्मई को इस मुद्दे पर धीरे चलने का निर्देश दिया है। गौरतलब है कि पंचमशाली लिंगायत वर्ग से ही आते हैं और लिंगायत में लगभग 55 प्रतिशत आबादी इनकी है। एक वक्त में तत्कालीन मुख्यमंत्री बीएस येद्दुरप्पा ने भी इस पर कदम बढ़ाने की कोशिश की थी, लेकिन तब नेतृत्व ने उन्हें रोक दिया था। अब बोम्मई इस पर आगे बढ़ना चाहते हैं।

भाजपा के पक्ष में मतदान करते रहे हैं लिंगायत

बोम्मई समर्थकों को लगता है कि ऐसा हुआ तो कम से कम लिंगायत के एक बड़े वर्ग के वह नेता के रूप में स्थापित हो जाएंगे। लेकिन जानकारों का का मानना है कि यह व्यक्तिगत रूप से लाभदायक हो सकता है लेकिन चुनाव की दृष्टि से यह घातक होगा। सच्चाई यह है कि लिंगायतों का लगभग 80 फीसद वोट पहले भी भाजपा को पड़ता रहा है। अगर पंचमशाली आरक्षण हुआ तो लिंगायत के ही बाकी बचे लगभग 45 प्रतिशत लोगों को समझाना मुश्किल होगा।

केंद्रीय नेतृत्व ने CM बोम्मई को किया सतर्क

वहीं कुरुबा और वोकालिग्गा में आरक्षण की मांग चल रही है। उस दशा में वोकालिग्गा भाजपा से और दूर छिटक सकते हैं। विरोधी दलों को प्रचार का एक बड़ा अवसर मिल जाएगा और पिछले कुछ महीनों में भाजपा ने जो कवायद शुरू की है, उसे झटका लग सकता है। बताया जाता है कि प्रदेश में आपसी खींचतान को लेकर भी केंद्रीय नेतृत्व ने बोम्मई को सतर्क किया है। प्रदेश संगठन को भी आगाह किया गया है।