झारखंड के खूंटी सिमडेगा गुमला लोहरदगा और लातेहार जिलों में हर दो से तीन किमी पर एक चर्च दिखाई देता है। ये सभी चर्च अपने-अपने तरीके से मतांतरण के काम में लगे हुए हैं जिन्हें विदेशों ये आर्थिक सहयोग मिलता है।
संजय कुमार, रांची। झारखंड में ईसाई मिशनरियों की ओर से अवैध मतांतरण का खेल जारी है। इस खेल मे एक-दो नहीं, आठ प्रकार के चर्च अलग-अलग इलाकों में लगे हैं। तीन चर्च तो झारखंड में वर्षों से कार्यरत हैं, वहीं कुछ चर्च दक्षिण भारत से आकर झारखंड के जनजातीय बहुल इलाकों मे सेवा व शिक्षा के नाम पर अवैध मतांतरण कराने में लगे हैं।
जो चर्च झारखड में काम कर रहे हैं वे हैं चर्च आफ नार्थ इंडिया (सीएनआइ), रोमन कैथोलिक (सीआर), जर्मन लुथरन (जीईएल), विश्ववाणी, विलिवर्स, पेंटिकोस्टल चर्च, हेंब्रन, एसेंबली आफ गाड। ये सभी चर्च अपने-अपने तरीके के काम कर रहे हैं। सीएनआई को अमेरिका से सहयोग मिलता है, तो सीआर को रोम से वहीं, जीईएल को जर्मनी से।
प्रलोभन देकर चल रहा मतांतरण का खेल
दैनिक जागरण द्वारा घर वापसी किए कुछ लोगों से बातचीत करने पर पता चला कि कैसे प्रलोभन देकर मतांतरण का खेल कराया जाता है और बाद में कोई सुविधा नहीं दी जाती है। उन लोगों ने कहा कि हम लोगों को ईसाई मिशनरियों के झूठे वादों में आकर अपना धर्म नहीं बदलना चाहिए। हिंदू धर्म ही अपना सबसे सुंदर है।
तेजी से काम फैलाने में हैं लगे हैं कई चर्च
झारखंड के खूंटी, सिमडेगा, गुमला, लोहरदगा और लातेहार जिलों में पहले 15 से 20 किमी पर कोई चर्च दिखता था, परंतु अब तो दो से तीन किमी पर चर्च दिखाई दे रहा है। झारखंड में पहले से काम कर रहे चर्च के बजाय सबसे ज्यादा तेजी से विश्ववाणी और विलिवर्स चर्च ने अपना काम फैलाना शुरू किया है।
खूंटी और सिमडेगा जिले में मिलेंगे कई निर्माणाधीन चर्च
विश्ववाणी चर्च ने तो खूंटी जिले के ग्रामीण इलाकों में अपना स्कूल भी खोलना शुरू कर दिया है। सूत्रों के अनुसार कई स्वयंसेवी संगठन इनका सहयोग करते हैं। भारत सरकार की ओर से कई संगठनों के विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) के तहत विदेश से मिलने वाले मदद पर प्रतिबंध लगाने के बाद इन चर्चों के कामों में रुकावट आई है। खूंटी और सिमडेगा जिले में कई चर्च निर्माणाधीन मिल जाएंगे।मडेगा जिले में तो कुछ वर्ष पहले उन इलाकों में भी चर्च बना दिए गए जहां लोगों की आबादी भी नहीं थी। दो वर्ष में ही हो गया मोह भंग बच्चों की बीमारी ठीक होने और उनको पढ़ाने की मुफ्त में व्यवस्था करने के प्रलोभन में आकर दो वर्ष पहले रांची के सुनील उरांव और गोपाल लोहरा चर्च जाने लगे और पूजा पाठ छोड़ दिया।