कानून से ऊपर नहीं मजिस्ट्रेट, न्यायाधीश; कामकाज में लापरवाही के परिणाम भुगतने होंगे: केरल हाईको


केरल उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक पूर्व मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) को निलंबित किया।

केरल हाईकोर्ट ने एक पूर्व मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) को निलंबित कर दिया। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट पर लक्षद्वीप में एक आरोपी को दोषी ठहराने के लिए एक आपराधिक मुकदमे में कथित तौर पर जाली सबूत देने का आरोप है।

कोच्चि, एजेंसी। केरल उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक पूर्व मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) को निलंबित कर दिया। निलंबित करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि मजिस्ट्रेट, न्यायाधीश और अन्य पीठासीन अधिकारी कानून से ऊपर नहीं हैं और उन्हें अपने कामकाज में लापरवाही का परिणाम भुगतने पड़ेंगे। समाचार एजेंसी पीटीआइ के मुताबिक, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट पर लक्षद्वीप में एक आरोपी को दोषी ठहराने के लिए एक आपराधिक मुकदमे में कथित तौर पर जाली सबूत देने का आरोप है। न्यायमूर्ति पीवी कुन्हीकृष्णन ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को निलंबित करने का निर्देश देते हुए कहा, 'यह सभी के लिए एक सबक होना चाहिए।'

पूर्व सीजेएम ने फर्जी सबूत बनाकर जालसाजी की: उच्च न्यायालय

उच्च न्यायालय ने कहा, प्रथम दृष्टया, मेरी राय है कि अतिरिक्त तीसरे प्रतिवादी ने गंभीर कदाचार और कर्तव्य की अवहेलना की है।' न्यायलय ने आगे कहा, 'इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में इस अदालत को प्रथम दृष्टया यह निष्कर्ष निकाला है कि अतिरिक्त तीसरे प्रतिवादी (पूर्व सीजेएम) ने PW7 (आपराधिक मामले में गवाहों में से एक) के सबूत बनाकर जालसाजी की है।

कई लोगों ने मिलकर दिया इस अपराध को अंजाम

उच्च न्यायालय ने प्रारंभिक जांच करने के लिए पूर्व सीजेएम के चेरियाकोया और तत्कालीन बेंच क्लर्क पीपी मुथुकोया और एलडी क्लर्क एसी पुथुन्नी को आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 340 (झूठी कार्यवाही) के तहत नोटिस जारी किया। बता दें कि तीनों व्यक्तियों को 23 जनवरी, 2023 को उच्च न्यायालय के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया गए थे। उच्च न्यायालय का सुविचारित मत था कि बेंच क्लर्क और एलडी क्लर्क, जो पूर्व सीजेएम के साथ तैनात थे, उनके कृत्यों को सही ठहराने के लिए उनके साथ मिलीभगत कर रहे थे। इस मामले पर याचिकाकर्ता का कहना था कि पूर्व सीजेएम ने उनके साथ व्यक्तिगत शत्रुता के कारण जांच अधिकारी के जाली साक्ष्य बनाए और उन्हें अपराध के लिए साढ़े चार साल जेल की सजा सुनाई।

उच्च न्यायालय ने आगे कहा, 'मजिस्ट्रेट, न्यायाधीश और अन्य पीठासीन अधिकारी कानून से ऊपर नहीं हैं और यदि वे कर्तव्य का कोई उल्लंघन करते हैं, तो उन्हें निश्चित रूप से भय और पक्षपात के बिना परिणामों का सामना करना होगा।' चूंकि उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ सख्त कदमों को स्थगित करते हुए एक अंतरिम निर्देश जारी किया था ताकि वे सीजेएम के आदेश के खिलाफ अपीलीय अदालत का दरवाजा खटखटा सकें।ॉ

 उच्च न्यायालय ने कहा कि उस पहलू पर कोई और आदेश आवश्यक नहीं है। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता कानून के अनुसार अपीलीय अदालत के समक्ष अपनी सभी दलीलों का विरोध करने के लिए स्वतंत्र हैं।'