वाह असम! 200 सालों से दे रहा चाय की चुस्की का मजा, खूबसूरत बागानों में जश्न का माहौल

 


200 साल चाय के पूरे होने पर असम में जश्न मनाया जा रहा है

असम पिछले 200 सालों से चाय का उत्पादन कर रहा है। 200 साल चाय के पूरे होने पर असम में जश्न मनाया जा रहा है। असम चाय के लिए ही जाना जाता है। हरे हरे बागानों में चाय की पत्तियां तोड़ते लोग पर्यटकों को अपनी ओर बहुत आकर्षित करते हैं।

नई दिल्ली, (एएनआई)। कड़ाके की सर्दी और हाथ में चाय की प्याली की इच्छा हर किसी को होती है। आपकी हर चाय की चुस्की में असम की खुशबू जरूर होती है। देश में चाय की खेती अगर कहीं सबसे ज्यादा होती है तो वो है असम। असम में न जाने कितने सालों से चाय की खेती हो रही है और हर साल आमदनी में भारी इजाफा हो रहा है। असम में चाय के 200 साल पूरे होने पर चाय उत्पादकों ने जश्न मनाना शुरु कर दिया है।

असम चाय के लिए ही जाना जाता है। हरे हरे बागानों में चाय की पत्तियां तोड़ते लोग पर्यटकों को अपनी ओर बहुत आकर्षित करते हैं।

आजीविका का साधन

अपनी समृद्ध रंगीन और सुगंधित चाय के लिए विश्व स्तर पर प्रसिद्ध असम का चाय उद्योग देश का सबसे बड़ा उद्योग है। असम का चाय उद्योग लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करता है। असम की बड़ी आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चाय बागानों पर निर्भर हैं। असम ऑर्थोडॉक्स और सीटीसी (क्रश, टियर, कर्ल) दोनों प्रकार की चाय के लिए प्रसिद्ध है।

आज की स्थिति में, असम सालाना लगभग 700 मिलियन किलोग्राम चाय का उत्पादन करता जो कि भारत के कुल चाय उत्पादन का लगभग आधा हिस्सा है। राज्य 3,000 करोड़ रुपये के बराबर अनुमानित वार्षिक विदेशी मुद्रा आय भी कमाता है।

भारत कुल मिलाकर वैश्विक चाय उत्पादन में 23 प्रतिशत का योगदान देता है और चाय बागान क्षेत्र में लगभग 1.2 मिलियन श्रमिकों को रोजगार देता है।

ऐसे हुई थी भारत में चाय की खोज

साल 1823 में स्कॉटिश रॉबर्ट ब्रस ने एक देसी चाय के पौधे की खोज की थी। ये पौधा ऊपरी ब्रह्मापुत्र घाटी में स्थानीय सिंघपो जनजाती द्वारा उगाई जा रही थी। इसके बाद, तत्कालीन लखीमपुर जिले में 1833 में सरकार द्वारा एक चाय बागान शुरू किया गया था।

1823 से लेकर अब तक भारतीय चाय विश्व भर में मशहूर है। असम चाय उत्पादन का सबसे बड़ा राज्य है और यहां की चाय विदेशों में बेची जाती है। असम में चाय के उद्योग को अब 200 साल पूरे हो चुके हैं।

200 साल पूरे होने का जश्न

असम में चाय उद्योग को 200 साल पूरे हो चुके हैं। असम चाय के 200 साल पूरे होने का जश्न मनाने का पहला कार्यक्रम पिछले हफ्ते जोरहाट में हुआ। इसका आयोजन नॉर्थ ईस्टर्न टी एसोसिएशन (NETA)के बैनर तले किया गया था।

इस अवसर पर, चाय शोधकर्ता और लेखक प्रदीप बरुआ द्वारा लिखित पुस्तक 'टू हंड्रेड इयर्स ऑफ़ असम टी 1823-2023: द जेनेसिस एंड डेवलपमेंट ऑफ़ इंडियन टी' का विमोचन किया गया। यह पुस्तक असम के चाय उद्योग की संपूर्ण 200 साल की यात्रा का इतिहास बताती है। इसके साथ ही अब चाय की खेती को पढ़ाई के रुप में भी शुरु किया जाएगा।

चाय बागान श्रमिकों की दैनिक मजदूरी पर सवाल

असम में भले ही चाय बागान उद्योग फल फूल रहा हो लेकिन कई ऐसी समस्याएं है जिससे सभी जूझ रहे हैं। चाय बागान मजदूरों की कम मजदूरी सबसे बड़ी समस्या है। लम्बे समय के आंदोलन के बाद अब चाय बागान मजदूरों की मजदूरी में बढ़ोत्तरी की गई। असम ने हाल ही में चाय बागान श्रमिकों के लिए दैनिक मजदूरी में 27 रुपये की वृद्धि की है।

मजदूरी में बढ़ोत्तरी के बाद, असम की बराक घाटी में चाय श्रमिकों को प्रति दिन 210 रुपये और ब्रह्मपुत्र घाटी के लिए 232 रुपये मिलेंगे। 2021 में राज्य के चुनाव से ठीक पहले, असम में भाजपा सरकार ने मजदूरी दर में 38 रुपये की बढ़ोतरी की थी।

विकास के लिए नई निति

असम अब अपने 200 साल पुराने चाय उद्योग के लिए नई नीति पर काम कर रहा है। सूबे की सरकार अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस के उपलक्ष्य में वार्षिक चाय उत्सव आयोजित करने की भी योजना बना रही है। वार्षिक चाय उत्सव हर साल 21 मई को मनाया जाता है, जिसके लिए प्रति वर्ष 50 लाख रुपये की राशि इस उद्देश्य के लिए रखी जाएगी।

बता दें कि साल 2023 तक पूरे विश्व में चाय का उत्पादन 3.15 मिलियन टन वार्षिक था। चाय के प्रमुख उत्पादक देशों में भारत है। इसके बाद चीन का स्थान था ।