पिछले 5 वर्षों में उच्च न्यायालयों में केवल 15 फीसदी पिछड़े समुदाय के न्यायाधीशों की नियुक्ति: न्याय विभाग

 


पिछड़ी जाति की जनसंख्या और उनकी नियुक्ति में काफी अंतर।
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विभाग ने संसदीय समिति के सामने एक प्रेजेंटेशन दिया है। जिसमें उसने बताया कि पिछले 5 सालों में जितने भी न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई है उनमें से केवल 15 प्रतिशत न्यायाधीश पिछड़ी जातियों से आते हैं। कॉलेजियम द्वारा अब तक नियुक्ति को समावेशी नहीं बनाया जा सका है।

नयी दिल्ली, पीटीआई। न्याय विभाग ने संसदीय समिति के सामने एक प्रेजेंटेशन देते हुए न्यायपालिका में पिछड़ी जातियों के स्थिति के बारे में बताया। विभाग ने कहा कि पिछले पांच सालों में उच्च न्यायालयों में नियुक्त न्यायाधीशों में से पिछड़े समुदाय से आने वाले न्यायधीश केवल 15 प्रतिशत है। साथ ही विभाग ने इंगित करते हुए कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में न्यायपालिका की प्रधानता के तीन दशकों के बाद भी नियुक्ति को समावेशी और सामाजिक रूप से समान नहीं बनाया जा सका है।

"उपयुक्त उम्मीदवारों के नामों की सिफारिश"

विभाग ने यह रेखांकित करते हुए कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति का प्रस्ताव कॉलेजियम के पास है तो ऐसे में उसको जिम्मेदारी दी गई है कि न्यायधीशों की नियुक्ति को दौरान उसे अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अल्पसंख्यक और महिलाएं से आने वाले उपयुक्त उम्मीदवारों के नामों की सिफारिश करनी चाहिए जिससे सामाजिक विविधता के मुद्दे को हल किया जा सकें।

सुशील मोदी की अध्यक्षता

विभाग ने इशारा करते हुए कहा कि फिलाहल सरकार सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में केवल उन्हीं लोगों को नियुक्त करने में प्राथमिकता देता है जिनकी सिफारिश कॉलेजियम द्वारा की जाती है। न्याय विभाग ने भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की अध्यक्षता में कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति के समक्ष एक विस्तृत प्रस्तुति दी।

अपने प्रेजेंटेशन में विभाग ने कहा, "न्यायपालिका को संवैधानिक अदालतों के न्यायाधिशों की नियुक्ति करने की प्राथमिकता मिलें लगभग 30 साल हो चुके हैं लेकिन अब भी वह इस सामाजिक विविधता को दूर नहीं कर पाया है। विभाग ने आगे कहा कि सरकार ने उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को प्रस्ताव भेजकर इस बात की सिफारिश की है कि जब भी न्यााधीशों के नाम भेजे जाते हैं तो उसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यकों और महिलाओं वर्ग से उपयुक्त उम्मीदवारों का नाम भी भेजना चाहिए ताकि सामाजिक विविधता सुनिश्चित किया जा सके।

पांच सालों में 537 की नियुक्ति

न्याय विभाग द्वारा साझा किए गए विवरण के अनुसार, साल 2018 से 19 दिसंबर, 2022 तक कुल 537 न्यायाधीशों को उच्च न्यायालयों में नियुक्त किया गया था, जिनमें से 1.3 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति, 2.8 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 11 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग से थे। वहीं, 2.6 फीसदी न्यायाधीश अल्पसंख्यक समुदायों से थे। विभाग ने प्रेजेंटेशन के दौरान यह भी बताया कि साल 2018 से 19 दिसंबर, 2022 के बीच नियुक्त होने वाले 20 न्यायाधीशों की सामाजिक पृष्ठभूमि की कोई जानकारी नहीं है।

प्रेजेंटेशन के दौरान, विभाग ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) के बारे में भी बात की। विभाग ने कहा कि एनजेएसी की ओर से इस बात की जानकारी दी गई है कि यह अपने साथ दो और लोगों को शामिल करने वाला है। इनको अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग समुदायों, अल्पसंख्यक या एक महिला से नामित किया जाएगा। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने NJAC को "असंवैधानिक और शून्य" घोषित कर दिया है।