चारों ओर तबाही, लेकिन कोतवाली भवन पर भूधंसाव का कोई असर नहीं, आखिर इसमें ऐसा क्‍या है खास?

 


Joshimath Sinking: कोतवाली भवन जो भूस्खलन जोन में घिरे होने के बाद भी सुरक्षित है। साभार अजय कृष्ण मेहता

Joshimath Sinking भूधंसाव प्रभावित सिंहधार और मनोहरबाग वार्ड को असुरक्षित घोषित कर वहां घरों को खाली कराया जा चुका है। असुरक्षित भवनों के बीच में 53 वर्ष पूर्व पारंपरिक शैली में बनकर तैयार हुआ कोतवाली का भवन पूरी तरह सुरक्षित है।

 जोशीमठ: Joshimath Sinking: भूधंसाव प्रभावित सिंहधार और मनोहरबाग वार्ड को असुरक्षित घोषित कर वहां घरों को खाली कराया जा चुका है। अब भी यहां लगातार भूधंसाव हो रहा है।

जोशीमठ-औली रोपवे भी खतरे की जद में है, इसलिए उसका संचालन बंद किया जा चुका है। लेकिन, इन सब असुरक्षित भवनों के बीच में 53 वर्ष पूर्व पारंपरिक शैली में बनकर तैयार हुआ कोतवाली का भवन पूरी तरह सुरक्षित है।इस भवन पर न तो कहीं दरार आई हैं, न इसके आसपास भूधंसाव का ही कोई असर दिखाई दे रहा। इससे इतना तो स्पष्ट रूप में समझा जा सकता है कि प्रकृति का कोप उन्हीं निर्माणों पर बरसा, जो जोशीमठ के भूगोल से मेल नहीं खाते थे। जिन्हें बनाने में प्रकृति के नियमों का पालन नहीं किया गया।

दूसरी मंजिल पर पुलिस कर्मियों की बैरक

जोशीमठ कोतवाली के भवन का निर्माण कार्य वर्ष 1962 में शुरू हुआ था। वर्ष 1970 यह बनकर तैयार हुआ और इसमें थाना (बाद में कोतवाली) स्थापित कर दिया गया। मंजिला इस भवन में प्रथम तल पर दो बंदी गृह, कोतवाली कार्यालय, मालखाना व प्रभारी कार्यालय है। जबकि, दूसरी मंजिल पर पुलिस कर्मियों की बैरक है। मुख्य भवन से सटकर ही एक अन्य दो मंजिला भवन भी बना है । जिसमें महिला हेल्पलाइन संचालित होती है।

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खास बात यह कि ये दोनों भवन बिना आरसीसी स्ट्रक्चर के पत्थरों की मोटी चिनाई से बने हैं। वर्तमान में कोतवाली के आसपास के सभी भवन रेड जोन में हैं। इनमें दरार इतनी गहरी हैं कि कब ढह जाएं, कहा नहीं जा सकता। कोतवाली के सामने ही बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके दो होटल ढहाए जा रहे हैं।

इन्हीं के बगल में दो और होटल झुक चुके हैं। कोतवाली के ऊपर स्थित भवन भी दरारों के चलते रहने लायक नहीं रहे। यही नहीं, कोतवाली के दोनों भवनों के पास ही आरसीसी स्ट्रक्चर से वर्ष 2015 में बने पुलिस के एक अन्य भवन पर भी दरार आ चुकी हैं।

हरीश भट्ट का दो मंजिला मकान भी पूरी तरह सुरक्षित

नृसिंह मंदिर के पास ही लगभग 50 वर्ष पूर्व पहाड़ी शैली में बना हरीश भट्ट का दो मंजिला मकान भी पूरी तरह सुरक्षित है। भट्ट बताते हैं कि इस भवन का निर्माण मिट्टी व पत्थर से हुआ है।

इसके अलावा नृसिंह मंदिर के पास ही राजेश नंबूरी के 1970 के दशक में बने तीन मंजिला मकान और सिंहधार में प्यारेलाल भट्ट के 55 साल पुराने दो मंजिला मकान को भी आपदा छू तक नहीं पाई।

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शहर और शहर के आसपास पारंपरिक शैली में बने इस तरह के मकानों की संख्या सौ के आसपास होगी, जिन्हें आपदा में कोई नुकसान नहीं पहुंचा। शनिवार को चमोली जिले के प्रभारी मंत्री डा. धन सिंह रावत ने भी कोतवाली के सुरक्षित भवनों को देखा।पुलिस अधीक्षक प्रमेंद्र सिंह डोबाल ने उन्हें बताया कि कोतवाली का निर्माण पत्थरों से पहाड़ी शैली में हुआ है, जिस कारण इस पर भूधंसाव का कोई असर नहीं हुआ। उनका कहना था कि प्रकृति की इस चेतावनी को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।