नई दिल्ली, । एक ऐसा आध्यात्म गुरू जिसने भारतीय सनातन धर्म को पूरी दुनिया से परिचित करवाया। भारतीय पुनर्जागरण के पुरोधा माने जाने वाले स्वामी विवेकानंद की बातें हमेशा प्रासंगिक रहेगी। हालांकि, नरेंद्रनाथ दत्त से स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) बनने के सफर इतना आसान नहीं रहा। स्वामी विवेकानंद को कई ऐसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसे लांघ कर वो पूर्ण सन्यासी बने। गौरतलब है कि जिस इंसान ने पूरी दुनिया को जीवन जीने की एक नई राह दिखाई, उनकी सोच एक बार एक वेश्या ने बदल दी।
कहानी ये है कि एक बार जयपुर के राजा ने स्वामी विवेकानंद को अपने महल में बुलाकर उन्हें आदर सम्मान करने की इच्छा जताई। राजा के आग्रह पर विवेकानंद उनके महल पर पहुंच गए। उनके आने पर एक भव्य आयोजन किया गया। राजा ने इस कार्यक्रम में कई नर्तकियों को भी बुलाया। उनमें एक वेश्या भी थी। हालांकि, राजा को इस बात का अहसास हुआ कि सन्यासी की मेजबानी करते वक्त किसी वेश्या को बुलाना नहीं चाहिए। लेकिन, अब बहुत देर हो चुकी थी।
वहीं, जब यह बात विवेकानंद को पता चला कि उनके स्वागत में एक वेश्या भी आइ है। तो वो काफी परेशान हो गए। परेशानी की वजह थी कि विवेकानंद अभी तक पूर्ण सन्यासी नहीं बने थे, इसलिए उन्हें इस बात की चिंता थी कि वो जिस यौन इच्छाओं को दबाए बैठे हैं, वो इच्छा वेश्या को देखकर जाग न उठे। वेश्या से दूरी बनाने के लिए विवेकानंद ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया।
राजा को जब इस बात की भनक पड़ी तो वो समझ गए कि आखिर क्यों उन्होंने खुद को कमरे में कैद कर लिया है। राजा सीधे विवेकानंद से माफी मांगने उनके कमरे में दाखिल हुए। दाखिल होने के तुरंत बाद राजा ने माफी मांगते हुए कहा कि उसने कभी भी किसी सन्यासी की मेजबानी नहीं की थी, इसलिए उससे यह भूल हो गई। राजा ने कहा कि जो वेश्या उनके स्वागत के लिए आई है, वो देश की सबसे बड़ी वेश्या है। इसलिए उसे यूं वापस भेजना अच्छी बात नहीं है। यह बात सुनने के बाद भी विवेकानंद का आक्रोश कम नहीं हुआ और उन्होंने कहा कि वो कभी भी एक वेश्या के आगे नहीं आएंगे।
जब हुआ गलती का अहसास
विवेकानंद की यह बात वेश्या की कानों तक पहुंच गई। वेश्या ने इसके बाद बिना समय गंवाए गाना शुरू कर दिया। वह गीत सन्यास पर आधारित था। वेश्या ने गाते हुए कहा, 'मैं जानती हूं, मैं आपके योग्य नहीं हूं लेकिन आप मुझ पर थोड़ी दया कर सकते थे। मैं जानती हूं कि मैं रास्ते की गंदगी हूं। लेकिन आपको मुझसे नफरत करने की जरूरत नहीं है। मेरा कोई वजूद नहीं है, मैं अज्ञानी हूं, मैं पापी हूं, लेकिन आप तो एक संत हैं, फिर आप मुझसे डर क्यों रहे हैं?'
यह बात जैसे ही विवेकानंद के कानों तक पहुंची, उन्हें तुरंत अपनी गलती का अहसास हो गया। उन्होंने खुद से पूछा कि आखिर वो वेश्या से डर क्यों रहे हैं? वेश्या के पास जाने में क्या पाप है?
वेश्या के आगे परास्त हुए विवेकानंद
इसके बाद विवेकानंद को अहसास हो गया कि उन्हें वेश्या के आक्रर्शन का डर है। अगर वो अपने मन से यह डर निकाल देंगे तो उनका मन शांत हो जाएगा, जिससे वो एक संपूर्ण सन्यासी बनने की तरफ बढ़ सकेंगे। इसके बाद वो फौरन दरवाजे से बाहर निकले और वेश्या को प्रणाम किया। न सिर्फ वो वेश्या के आगे गए ब्लकि उन्होंने वेश्या से बातचीत करते हुए कहा, 'भगवान ने आज एक बड़ा रहस्य खोल दिया है। मुझे डर था कि मेरे अंदर कोई वासना होगी लेकिन आपने मुझे पूरी तरह परास्त कर दिया। मैंने ऐसी शुद्ध आत्मा पहले कभी नहीं देखी।' विवेकानंद ने आगे कहा कि अगर मैं आपके साथ अकेले भी रहूं तो मुझे कोई परवाह नहीं।