यहां जानें इसके लक्षण, इलाज और उपचार

दिल्‍ली रीढ़ की हड्डी (स्पाइनल कॉर्ड) नसों (न‌र्व्स) का वह समूह होती है, जो दिमाग का संदेश शरीर के अन्य अंगों खासकर हाथों और पैरों तक पहुंचाती है। जाहिर है अगर स्पाइनल कॉर्ड में किसी भी प्रकार की चोट (इंजरी) लग जाए, तो यह स्थिति पूरे शरीर के लिए घातक हो सकती है। चोट को तीन प्रकारों में विभाजित किया गया है। जैसे नसों में हल्की चोट या नस का थोड़ा सा फटना। नस के पूरा फट जाने को स्पाइनल कॉर्ड में ट्रान्सेक्शन के नाम से भी जाना जाता है। अगर आपने ध्यान दिया हो तो पिछले कुछ सालों में इसी दर्द के इर्दगिर्द घूमने वाली स्पाइनल कॉर्ड की वर्टिब्रा एल थ्री या एल फोर, सी फोर और सी फाइव में दर्द आदि की परेशानियां भी सामने आने लगी हैं। हर पांचवें व्यक्ति को कंधे, पीठ या कमर के निचले हिस्से में खिंचाव और दर्द रहता है। जानें आखिर यह परेशानी है क्या?


चोट की गंभीरता
किसी भी दुर्घटना के बाद चोट की गंभीरता इस बात पर निर्भर करती है कि स्पाइनल कॉर्ड का कौन सा भाग चोटग्रस्त हुआ है? उदाहरण के तौर पर स्पाइनल कॉर्ड के निचले भाग में चोट लगने से रोगी को लकवा लग सकता है। कई मामलों में शरीर का निचला भाग बेकार हो जाता है। इस अवस्था को पैराप्लेजिया कहा जाता है। इसी तरह जब चोट गर्दन पर लगती है, तो इसके कारण पीड़ित व्यक्ति के दोनों हाथों व पैरों में लकवा लग जाता है, जिसे क्वाड्रीप्लेजिया कहते हैं। रोगी की स्थिति की जटिलता इस बात पर भी निर्भर करती है कि उसको कंप्लीट इंजरी (चोटग्रस्त भाग की पूरी नसों या न‌र्व्स का फट जाना) है या इनकंप्लीट। कंप्लीट इंजरी के मामले में रोगी के चोटिल भाग में और आसपास किसी हरकत का अहसास नहीं होता है। सब कुछ जैसे सुन्न हो जाता है, लेकिन इनकंप्लीट इंजरी में रोगी के चोटिल भाग में दर्द, हरकत या किसी प्रकार का अहसास अवश्य होता है। जितनी बड़ी चोट (इंजरी) होती है, मामला उतना ही गंभीर होता है और इंजरी जितनी कम या छोटी होती है, केस में जटिलता कम होती है।



जानें लक्षणों को
रीढ़ की हड्डी नसों की केबल पाइप जैसी होती है। जब यह पाइप संकुचित हो जाती है, तो नसों पर दबाव से ये लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं ...



  • पैरों में जलन महसूस होना

  • पैरों में सियाटिका की समस्या होना

  • सुन्नपन या झुनझुनी का अहसास होना

  • गर्दन, पीठ व कमर में दर्द और जकड़न

  • लिखने, बटन लगाने और भोजन करने में समस्या

  • गंभीर मामलों में मल-मूत्र संबंधी समस्याएं उत्पन्न होना

  • चलने में कठिनाई यानी शरीर को संतुलित रखने में परेशानी

  • कमजोरी के कारण वस्तुओं को उठाने या छोड़ने में परेशानी


शुरू में उपर्युक्त लक्षणों के प्रकट होने पर पीड़ित व्यक्ति को कुछ देर बैठने पर आराम मिल जाता है, लेकिन वक्त गुजरने के साथ मरीज न चल पाता है और न खड़ा हो पाता है। अंतत: वह बिस्तर पकड़ लेता है। इस स्थिति तक पहुंचने में कुछ साल लग जाते हैं। इस दौरान पीड़ित व्यक्ति डॉक्टर को दिखाता है व दवाओं से ही इलाज कराता है।


बचाव व रोग का उपचार



  • व्यायाम इस रोग से बचाव के लिए आवश्यक है

  • देर तक गाड़ी चलाने की स्थिति में पीठ को सहारा देने के लिए तकिया लगाएं

  • कंप्यूटर पर अधिक देर तक काम करने वालों को कम्प्यूटर का मॉनीटर सीधा रखना चाहिए

  • कुर्सी की बैक पर अपनी पीठ सटा कर रखना चाहिए। थोड़े-थोड़े अंतराल पर उठते रहना चाहिए। उठते-बैठते समय पैरों के बल उठना चाहिए

  • दर्द अधिक होने पर चिकित्सक की सलाह से दर्द निवारक दवाओं का प्रयोग किया जा सकता है। फिजियथेरेपी द्वारा गर्दन का ट्रैक्शन व गर्दन के व्यायाम से आराम मिल सकता है


डायग्नोसिस
रक्त की जांच, एक्स रे, सीटी स्कैन या कैट स्कैन और एमआरआई जांचें।



उपचार
स्पाइनल कॉर्ड इंजरी का उपचार जटिलता को देखकर किया जाता है और कुछ अन्य कारणों पर भी ध्यान दिया जाता है। जैसे किस प्रकार की इंजरी है। रोगी का शरीर कौन से उपचार की पद्धति को बर्दाश्त कर सकता है। चोट लगने के बाद तुरंत ही कुछ उपचार करने होते हैं। जैसे गर्दन आदि में प्लास्टर, कभी-कभी सर्जरी करने की भी जरूरत पड़ जाती है ताकि रोगी की चोट से उसके शरीर को अधिक नुकसान न पहुंचे।


स्पाइनल कॉर्ड इंजरी के अधिकतर मामलों में चोट लगने के बाद रोगी को आईसीयू में वेंटिलेटर पर रखा जाता है। पेय पदार्थ देने के लिए रोगी के गले में नली लगाई जाती है। मल-मूत्र के लिए भी एक ट्यूब लगायी जाती है। डॉक्टरों की टीम लगातार रोगी के दिल की धड़कन, ब्लड प्रेशर आदि पर निगरानी रखती है और पीड़ित व्यक्ति को दवाइयां दी जाती हैं।


आधुनिक उपचार
अनेक मामलों में मिनिमली इनवेसिव सर्जरी (एमआईएस) से भी रोगी की कुछ समस्याओं को कम करने का प्रयास किया जाता है। एक छोटा चीरा लगाकर यह सर्जरी की जाती है। सर्जरी की इस प्रक्रिया में रक्तस्राव व चीर-फाड़ कम से कम होती है। इसीलिए बड़ी सर्जरी के स्थान पर संभव हो सके, तो एमआईएस को वरीयता दी जाती है। ऐसे मामलों में रोगियों को लंबे समय तक हॉस्पिटल में रुकना नहीं पड़ता है। पीड़ित व्यक्ति को पुनर्वास (रीहैबिलिटेशन) की आवश्यकता पड़ती है। पुनर्वास के अंतर्गत फिजियोथेरेपी, रोगी व उसके परिजनों की काउंसलिंग को शामिल किया जाता है।