कोरोना की वजह से लंबे समय तक खराब रह सकते हैं लंग्स, सीटी स्कैन में नहीं चलता पता
वैज्ञानिकों का ये शोध जर्नल रेडियोलॉजी में पब्लिश भी हुआ है। इसमें कहा गया है कि कोविड के ऐसे मरीज जो अस्पताल में भर्ती नहीं भी हुए हैं, लेकिन लंबे समय से उन्हें सांस लेने में परेशानी हो रही है, उनको भी इस तरह की चीजें हो सकती हैं। हालांकि शोधकर्ताओं ने अपनी रिसर्च में ये भी कहा है कि इसकी पुष्टि या इसको पुख्ता करने के लिए व्यापक रिसर्च करने की जरूरत है। उन्होंने शोध के कोरोना मरीजों के हाइपरपोलराइज्ड जीनोन एमआरआई स्कैन से इसके बारे में पता चला है। शोध में कहा गया है कि इसकी जानकारी दूसरे टेस्ट से सामने नहीं आती है।
यूनिवर्सिटी ऑफ शेफिल्ड के प्रोफेसर जिम वाइल्ड का कहना है कि इस शोध से जो निष्कर्ष निकला है वो बेहद दिलचस्प है। Xe MRI तकनीक से फैंफड़ों के उसी निश्चित जगह की जानकारी मिली जहां पर समस्या था और जो पहले किए गए सिटी स्कैन में पता नहीं चल सकी थी। इस शोध के प्रमुख शोधकर्ता फर्गस ग्लीसन का कहना है कि कई कोरोना मरीजों ने ठीक होने के कई महीनों बाद तक भी सांस लेने में दिक्क्त की बात साझा की है। इन मरीजों का सिटी स्कैन करने पर पता चला था कि फैंफड़े पूरी तरह से ठीक काम कर रहे हैं। आती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ये रूटिन चेकअप के दौरान पता नहीं चलता है। लेकिन Xe MRI में फैंफड़ों में आई खराबी का पता चल सका।
उनके मुताबिक इस समस्या का समाधान खून में ऑक्सीजन की सप्लाई सुनिश्चित करके की जा सकती है। फिलहाल शोधकर्ता उन मरीजों पर भी इसकी टेस्टिंग कर रहे हैं जो कोरोना के चलते अस्पताल में भर्ती नहीं हुए थे, लेकिन लंबे समय तक कोविड क्लीनिक में मौजूद रहे थे। शोधकर्ताओं ने साफ किया है कि ये फिलहाल बेहद शुरुआती है। उनके मुताबिक अस्पताल में भर्ती कोरोना मरीज जो सांस की समस्या से जूझ रहे थे और ऐसे कोरोना मरीज जो अस्पताल में भर्ती नहीं हुए थे, लेकिन उन्हें सांस की दिक्कत थी और का XeMRI स्कैन किया गया था। इनमें से 70 फीसद के लंग्स में खराबी पाई गई थी। ग्लीसन का कहना है कि इस पर व्यापक शोध के जरिए इस बात का पता लगाया जा सकता है कि ये समस्या कितनी आम है और इसको कितने समय में ठीक किया जा सकता है।